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बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2718
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

अध्याय - 5
वस्त्र निर्माण

(Clothing Construction)

ड्राफ्टिंग करते समय कटाई रेखा तथा सिलाई रेखा को अलग-अलग दिखाना चाहिए। मुख्य लाइनों को गहरा तथा सहायक लाइनों को हल्का खींचना चाहिए। ड्राफ्टिंग में प्लीट, डार्ट, चुन्ने आदि के निशान भी दिये जाते हैं।

कागज पर ड्राफ्टिंग का अभ्यास करना एक अच्छा काम है। कागज पर ड्राफ्टिंग दो प्रकार से की जाती है -

1. पूरे स्केल की ड्राफ्टिंग-पूरे नाप की ड्राफ्टिंग इन्च के नापों या सेन्टीमीटर के नापों में बड़े भूरे कागज पर तैयार की जाती है। अभ्यास के लिये अखबारी कागज का प्रयोग किया जा सकता है। ड्राफ्टिंग के लिए विशेष प्रकार की लाइनों वाले ड्राफ्टिंग पेपर भी मिलते हैं। इनके अभाव में भूरे कागज या सादे कागज का उपयोग किया जा सकता है।

2. छोटे स्केल की ड्राफ्टिंग नोट बुक, कापी, फाइल या प्रैक्टिकल कापी पर छोटे स्केल की ड्राफ्टिंग बनायी जाती है। इसके लिये स्केल ट्राई एंगल, पेंसिल तथा रबर का उपयोग किया जाता है। पूरे नाप का 1/4, 1/7 या 1/12 वाँ भाग स्केल के आधार पर रेखांकित किया जाता है।

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

•कुछ लोग सीधे कपड़े पर ड्राफ्टिंग करते हैं। कपड़े पर ड्राफ्टिंग के अन्तर्गत सिलाई, कटाई, फ्लीट, डार्ट, चुन्नटें हेम आदि के चिन्ह दिये जाते हैं। कपड़े पर टेलर्स चाक की सहायता से निशान लगाये जाते हैं। ड्राफ्टिंग के लिये कपड़े को उल्टा बिछाएँ तथा उल्टी ओर से ड्राफ्टिंग करें। इससे चाक के निशान की ओर रह जाते हैं।
• प्रिन्टेड कपड़ों पर सीधी ओर से पैटर्न बिछाकर ड्राफ्टिंग करना चाहिए। इससे नमूनों का सही सन्तुलन और सौन्दर्य प्राप्त किया जा सकता है।
• पैटर्न की सहायता से कपड़े बड़ी सरलता से कांटे जा सकते हैं। इस प्रकार कागज पर पैटर्न काट लेने से कपड़े की बचत होती है। पैटर्न काटते समय कन्धे, आस्तीन, कमर आदि के साथ टक्स, डार्ट, प्लीट आदि के भी निशान बना दिये जाते हैं। पैटर्न काटने से पूर्व सिलाई, काज, मेन लाइन के लिए भी चिन्ह लगा दिये जाते हैं।
• प्रत्येक पैटर्न के मुख्य भाग नीचे दिये जा रहे हैं :
1. वस्त्र का अगला तथा पिछला भाग,
2. कॉलर,
3. कफ,
4. आस्तीन
5. जेब
6. कॉलर, तीरा, पट्टी आदि
7. बटन पट्टी आदि ।
• एक स्थान पर जुड़ने वाले भाग को या आमने-सामने पड़ने वाले भागों पर चैक से चैक, धारी से धारी, मिलती रहने वाली डिजाइन होनी चाहिए।
• पैटर्न बनाने के लिए गृहणियों को मोटे भूरे कागज का प्रयोग करना चाहिए। जिन परिधानों की सिलाई हमेशा करनी पड़ती है, उनके पैटर्न कार्ड बोर्ड पर बनाकर रखने चाहिए। इन परिधानों में पायजामा, सलवार, हॉफ पैन्ट, ब्लाउज, कुरता आदि प्रमुख हैं।
• पैटर्न में सिलाई के लिए कुछ चिन्ह तथा संकेत बनाये जाते हैं इन संकेतों पर ही परिधान की फिटिंग निर्भर करती हैं। ये निर्देश चिन्ह निम्नलिखित प्रकार के होते हैं.
   1. डार्ट (Dart)
   2. नॉचेज (Notches)
   3. निर्देश रेखायें ( Guide lines)
   4. छिद्रण संकेत (Perforation Marks)
• पेपर पैटर्न बनाते समय व्यक्ति का सही माप लेना चाहिए वह पूरे आकार में बनाना चाहिए ।
• पेपर पैटर्न काटने से पहले वस्त्र का डिजाइन, स्टाइल निश्चित करने चाहिए ।
•ड्राफ्टिंग, नाप, सन्तुलन की जाँचोपरान्त कटिंग करनी चाहिए ।
•पेपर पैटर्न सदैव आधे भाग के काटे जाते हैं पूरे भाग के नहीं । अतः कपड़े को दोहरा कर लेना चाहिए।
• पेपर पैटर्न' तैयार करते समय पेन्सिल का ही उपयोग करना चाहिए।
• वस्त्र काटने से पूर्व पेपर पैटर्न बना लेने से काटने में त्रुटियों की संभावना नहीं रहती । पेपर पैटर्न द्वारा यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी भी वस्त्र के निर्माण में कितना कपड़ा चाहिए।
• पेपर पैटर्न में गलती होने से सुधार सम्भव होता है। इस प्रकार कपड़ा व्यर्थ होने से बच जाता है ।
• पेपर कागज का होने के कारण सस्ता बनता है तथा सरलतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।
• पोशाक बनाने के लिए कपड़े की लागत का किफायती अनुमान लगाने के लिए कपड़े से पोशाक के हिस्से काटने की व्यवस्था ले-आउट कहलाती है।
• पोशाक के सभी हिस्सों के अन्तिम पैटर्न लीजिए । अन्तिम पैटर्न लेने का उद्देश्य यह है कि सिलाई हक, टक्नग आदि को पहले से जोड़कर पैटर्न बना होता है जिससे गलती होने की संभावना कम होती है।
कपड़े की चौड़ाई डिजाइन आदि ध्यान में रखें। कपड़े की चौड़ाई अलग-अलग होती है, और डिजाइन कभी एक दिशा वाले तथा कभी अनेक दिशा वाले होते हैं। .
पूरे आकार का ले-आउट बनाइये ( आजकल कम्प्यूटर की मदद से भी ले-आउट बनाये जाते हैं इसलिए छोटे स्केट के पैटर्न बनाकर भी ले आऊट बनाया जा सकता है)
• पैटर्न पर लगे चिन्हों से दिखाई गई सूचनाओं के अनुसार पोशाक के पैटर्न रखिए। पैटर्न रखते समय फोल्ड, ओपनिंग कपड़े की दिशा, सिलाई हक आदि सूचनाएँ दर्शाई जाती हैं। •आस्तीन जैसे हिस्से के पैटर्न रखते समय दाहिने- बाएँ का ध्यान रखना चाहिए। ऐसे हिस्सों के लिए एक बार सीधी तरफ से और दूसरी बार उल्टी तरफ से पैटर्न रखने में गलती नहीं होगी । आस्तीन के अलावा शर्ट, कुर्तों के फ्रंट तथा ट्राउजर के फ्रंट और बैक तथा स्कर्ट के अगले और पिछले हिस्सों में भी दाहिना बायां होता है।
• ले आउट बनाते समय बड़े हिस्सों के पैटर्न पहले और छोटे-छोटे हिस्सों को बाद में रखिए ।
• डिजाइन वाला वस्त्र हो, तो मेंचिंग पाइंट का भी ध्यान रखिए। वस्त्र में चेक या धारियाँ हों तो उन्हें फ्रंट से बैंक जोड़ते समय या आस्तीनों को जोड़ते समय मैचिंग की जरुरत होती है।
• पोशाक के सभी हिस्सों के पैटर्न रखे हैं इसकी जाँच कीजिए । विभिन्न भागों के पैटर्नो की कुल संख्या पैटर्न पर लिखना इसलिए आवश्यक होता है कि उनमें से कोई खो न जाए।
• पोशाक में लगने वाली पट्टियाँ, पायपिंग आदि के लिए उरेब पट्टियाँ निकालने के लिए कपड़े की व्यवस्था कीजिए ।
• दो पैटनों के बीच कम से कम जगह रखिए ।
•भिन्न-भिन्न प्रकार का ले-आउट बनाकर उनमें से कम से कम लागत वाला. ले-आउट बनाकर उनमें से कम-से-कम लागत वाला ले आउट निश्चित कीजिए ।
•भिन्न-भिन्न अर्ज के वस्त्र के लिए ले-आउट अलग बनाइए और पैटर्न के साथ ही ले-आउट का नमूना भी रखिए।
• ड्राफ्टिंग बनाने से पैटर्न बनाने का कार्य सरल हो जाता है।
• ड्राफ्टिंग के द्वारा कपड़ा कभी गलत नहीं कटता, क्योंकि यदि सही नाप नहीं हो तो ड्राफ्ट सही नहीं बनता ।
• ड्राफ्टिंग बनाने में शरीर की सही माप तथा सही सिलाई आदि के लिए जगह छोड़ी जाती है जिससे परिधान सही फिटिंग का बनता है।
• एक ही ड्राफ्ट को बार-बार दोहराया जा सकता है। एक ही ड्राफ्ट से कई वस्त्रों की कटाई की जा सकती है।
• ड्राफ्टिंग के द्वारा अनुभवहीन व्यक्ति भी परिधान बना सकता है।
• ड्राफ्टिंग में ही परिधान की डिजाइन निश्चित कर ली जाती है जिससे सिलाई में कठिनाई नहीं होती है।
• ड्राफ्टिंग करने से समय की बचत होती है, क्योंकि ड्राफ्टिंग से डिजाइन आदि कार्य सरल हो जाते हैं जिससे कम समय में अधिक कार्य किया जा सकता है।
• ड्राफ्टिंग के द्वारा कम पैसे खर्च करके कम समय में अधिक उत्पादन भी किया जा सकता है जिससे आमदनी भी बढ़ सकती है। ड्राफ्टिंग के द्वारा कपड़े की भी बचत होती है।
• ड्राफ्टिंग बनाने में निम्नलिखित यंत्रों की आवश्यकता होती है -
   (1) टेलर चॉक या पेन्सिल,
   (2) रबर,
   (3) गुनिया स्केल (Squar scale),
   (4) छोटी स्केल (6 इंच),
   (5) पैटर्न मेज,
   (6) पिन (पेपर को मेज पर व्यवस्थित करने के लिए)
   (7) फ्रेन्च कर्व या आर्म होल (French curve or Armohole),
   (8) ब्राउन पेपर इत्यादि ।
• पैटर्न बनाने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता होती है. -
   (1) नापने का टेप,
   (2) स्केल (सीधी स्केल, कोणीय स्केल, दो भुजा वाली स्केल)
   (3) पेन्सिल,
   (4) ब्राउन पेपर
   (5) कागज काटने हेतु कैंची,
   (6) पैटर्न टेबल ।
• नाप लेने से पहले यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि कौन से वस्त्र सिलना है, व उस हेतु किन-किन नापों की आवश्यकता है। जैसे ब्लाउज बनाने हेतु वक्ष, कमर, चेस, शोल्डर, लम्बाई, बाँहों की लम्बाई व गोलाई के नाप की आवश्यकता होती है, जबकि पेटीकोट बनाने हेतु केवल सीट व कमर की नाप की आवश्यकता होती है।
• नाप लेने से पूर्व वस्त्र के प्रकार के साथ ही साथ शैली की जानकारी होनी आवश्यक है।
• नाप लेने हेतु प्रयोग किया जाने वाला टेप अच्छी किस्म का होना चाहिए। विशेषकर टेप पर चिन्ह स्पष्ट रूप से अंकित होना चाहिए ।
•नापने का टेप दोनों ओर से दो रंगों का होना चाहिए ताकि उसके मुड़ने पर तुरन्त समझ में आ जाये ।
• नाप लेने के तुरन्त बाद नाप लिख लेना चाहिए। अन्यथा नाप के भूलने की सम्भावना होती है ।
• नाप लेने वाले व्यक्ति को यह ज्ञात होना चाहिए कि वस्त्र विशेष के लिए कौन-से नाप लेने है तथा कहाँ से कहाँ तक लेने हैं।
•नाप लेते समय टेप को मजबूती से पकड़ना चाहिए, न अधिक ढीला न ही अधिक कसा हुआ रखें।
• छाती वाले माप लेते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि टेप कहीं से मुड़ तो नहीं रहा, साथ ही टेप को अधिक कसकर नहीं खींचना चाहिए।
• नाप देने वाले व्यक्ति को सीधा तनकर खड़ा होना चाहिए व किसी भी अंग में अतिरिक्त तनाव नहीं आने देना चाहिए ।
• नाप लेते समय जिस व्यक्ति हेतु परिधान बनाया जा रहा है, उसकी रुचि के बारे में पता कर लेना चाहिए।
• नाप देने वाले व्यक्ति को अतिरिक्त मोटे वस्त्र, अधिक एड़ी वाले जूते-चप्पल आदि नहीं . पहनना चाहिए।
•नाप लेने वाले व्यक्ति को नाप देने वाले व्यक्ति से कम-से-कम दो फीट दूर खड़े रहना चाहिए ।
• सिलाई मशीन एक ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो किसी वस्त्र या अन्य चीज को परस्पर एक धागे या तार से सिलने के काम आती है। इसका आविष्कार प्रथम औद्योगिक क्रान्ति के समय हुआ था।
• सिलाई मशीन से पहनने के सुन्दर कपड़े, छोटे-बड़े बैग, चादर, पतली या मोटी रजाइयाँ सिली जाती हैं।
• सिलाई मशीन का आविष्कार एक अंग्रेज द्वारा सन् 1790 में हुआ। इसका अनुसरण एक फ्रांसीसी व्यक्ति ने सन् 1830 में किया ।
• सिलाई मशीन के विभिन्न पुर्जे इस प्रकार वर्णित हैं -
   (1) दबाव पद छड़
   (2) सुई छड़
   (3) धागा उत्थापक
   (4) आईलेट
   (5) फीड डॉग
   (6) सुई पट
   (7) दबाव पट
   (8) बॉबिन धागा निदेशक
   (9) सुई
   (10) बॉबिन
   (11) सरकने वाला पट।
सिलाई मशीन के विभिन्न अन्य पुर्जे भी हैं।
• वस्त्र निर्माण में विभिन्न उपकरण प्रयोग में लाये जाते हैं तथा उनकी मदद से कपड़ों को सिलने में मदद ली जाती है जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
   (1) Measuring Tool,
   (2) Drafting Tool,
   (3) Marking Tool,
   (4) Cutting Tool,
   (5) Stiching Tool,
   (6) Pressing Tool.
• वस्त्र को बनाने के लिए वस्त्र का नाप लेने के बाद उसकी कटाई की जाती है और वस्त्र की कटाई के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण प्रयोग में लाये जाते हैं.
   (1) Scissors,
   (2) Shears,
   (3) Pinking Shears,
   (4) Seam Ripper,
   (5) Thread Clipper,
   (6) Embroidery Scissors.
• ग्रेन लाइन, कपड़े की किनारी के समानान्तर होनी चाहिए ।
• ले आउट के समय ड्रॉफ्टिंग के बड़े टुकड़े, कपड़े पर पहले रखे जाते हैं और छोटे टुकड़ों को बाद में कपड़े के ऊपर रखा जाता है।
• वैल्वैट या दूसरे रोएंदार कपड़ों में रोएं की दिशा का ध्यान रखना चाहिए।
• फेसिंग ताने की दिशा में सें निकाली जाती है और पाइपिंग उरेब कपड़े में से निकाली जाती है।
• एक तरफ प्रिण्ट वाले का ले आउट करते समय ध्यान रखें कि सभी हिस्सों के प्रिण्ट की दिशा एक हो ।
• वैल्ट को कपड़े पर ताने की दिशा में रखना चाहिए।
• यदि कपड़ा सिकुड़ने वाला है तो इसे पहले से सिकुड़ा लेना चाहिए ।
• नये व्यक्ति को साधारण वस्त्रों के साथ शुरूआत करनी चाहिए।
• ड्राफ्टिंग को कपड़े की उल्टी तरफ रखकर ही निशान लगाने चाहिए ।
• ड्राफ्टिंग के ऊपर बनी ग्रेन लाइन हमेशा कपड़े की किनारी के समान्तर होनी चाहिए ।
• कपड़े को बनाने की दिशा में नहीं काटना चाहिए, ऐसा करने पर वस्त्र का आकार बिगड़ जाता है।
• आरेखन के अन्तर्गत सिलाई रेखा, कटाई रेखा, प्लीट, डार्ट, नॉचेज आदि के चिह्न दिए जाते हैं। आरेखन का आधार तैयार परिधान का नाप होता है। अतः आरेखन करते समय परिधान के नाप ही आरेखित किए जाते हैं। सिलाई रेखा के बाद दबाने के लिए अतिरिक्त कपड़ा रखकर कटाई रेखा दी जाती है।
• कंधे के जोड़, गले एवं मुड्ढे की गहराई के लिए - या । पतले कपड़ों पर अतिरिक्त कपड़ा कम तथा भारी कपड़ों पर अधिक रखा जाता है।
• बाँह घेर, बॉडी, कमर - घेर पर 1" से 1/2 " अतिरिक्त कपड़ा रखा जाता है। परिधान के छोटे या कसे होने पर इन स्थानों पर पुनः सिलाई करके परिधान में ढीलापन लाया जा सकता है ।
• आरेखन करते समय कपड़े के टुकड़ों पर सीधा भाग, अग्र भाग, पृष्ठ भाग, बाँया भाग, गले की पट्टी, पाइपिंग, कॉलर आदि के चिह्न दिए जाएँ या नाम लिखती जाएँ।
• फर के कपड़े पर आरेखन करते समय रोओं की दिशा नीची रखी जाती है। इससे रोएँ अपना स्वाभाविक रूप प्रदर्शित कर पाते हैं।
• कपड़ा कम होने की स्थिति में कपड़े को पूरा बिछाकर सारे पैटर्न रखकर आरेखन करना चाहिए। बाँह या बॉडी पर वस्त्र के ग्रेन के अनुसार कपड़े को जोड़ा जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 परिधान एवं वस्त्र विज्ञान का परिचय
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 तन्तु
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 सूत (धागा) का निर्माण
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 तन्तु निर्माण की विधियाँ
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 वस्त्र निर्माण
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 गृह प्रबन्धन का परिचय
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 संसाधन, निर्णयन प्रक्रिया एवं परिवार जीवन चक्र
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 समय प्रबन्धन
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 शक्ति प्रबन्धन
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 धन प्रबन्धन : आय, व्यय, पूरक आय, पारिवारिक बजट एवं बचतें
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 कार्य सरलीकरण एवं घरेलू उपकरण
  32. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  33. उत्तरमाला

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